मीडिया के गोदी होने
की कथा सर्वत्र व्याप्त है, गोद में बैठ कर मीडिया सब गुणा-गणित तय करता है. कुछ
मीडिया में हैं और गोदी हैं, कुछ बेचारे मीडिया तो रह नहीं गए हैं पर इसीलिये गोदी
में हैं कि गोदी के सहारे मीडिया भी कहलाए जाते रहें, उनकी विडंबना है कि वे ज्यूं
ही गोदी से उतरे त्यूं ही मीडिया के दर्जे से भी गए ! इसलिए जो गोदी और मीडिया
दोनों ही हैं और जो मीडिया थे और अब सिर्फ गोदी रह गए हैं, दोनों का ही प्रयास है
कि वह गोदी जिसमें वो बैठे हैं, वो कुर्सी पर काबिज रहे ! क्यूंकि कुर्सी है तो
गोदी है, बिना कुर्सी वाले की गोदी में बैठ कर क्या करेंगे !
cartoon courtesy : insightful take
तो अब “जंबूदीपे, भारत खंडे, भारत खंड मा उत्तरखंडे” में
हालात-ए-हाज़रा यह है कि कुछ तो डेरादूण में फुल फ्लेजेड सत्ता की गोदी में डेरा जमाए हैं ! कुछ उनकी गोदी में हैं, जो हैं तो दिल्ली में पर
चाहते हैं कि वहां से सीधे डेरादूण में डेरा जम जाए !
यूं प्रयास तो वो बरसों-बरस से कर रहे हैं, लेकिन अब की बार
उनकी गोदी वालों ने भी मोर्चा संभाल लिया है. उनकी गोदी वाले डेरादूण में घपला-घोटाला
होने का राग सुबह-शाम,आठों याम गा रहे हैं ! जो धराली में दावा कर रहे थे कि वे डीएम,
सीएम से पहले पहुंच गए वो अब कई बार तो भ्रष्टाचार होने से पहले मौका-ए वारदात पर पहुँचने
का दावा कर रहे हैं ! लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ इनकी ये उठक-बैठक, उठा-पटक उनके
अपने चैनल तक नहीं पहुंच पा रही है ! घपला-घोटाला तो पहले भी था पर पहले ये गोदी
चाह नहीं थी, इसलिए उनकी घपले-घोटालों पर निगाह भी नहीं थी !
उधर जो डेरादूण में
स्मार्ट, हैंडसम गोदी में पहले से डेरा
जमाए हैं, वे खासे नाराज हैं. उनकी भर-भर लानत-मलामत कर रहे हैं, जो स्मार्ट-हैंडसम
गोदी की जगह, दिल्ली वाली गोदी को डेरादूण ला कर “इगास-बग्वाल” मानना चाहते हैं, “कचमोळी/कचबोळी
पार्टी” , कैंट रोड वाले आलीशान बंगले में करने की आस में हलकान हुए जा रहे हैं !
स्मार्ट, हैंडसम गोदी वाले, “रैबार” मार्का गोदी वालों को
गैंग तक ठहरा दे रहे हैं, उन्हें दलाल के खिताब से नवाज चुके हैं ! गोया ये खिताब
बांटने वाले तो इस प्रदेश में स्वतंत्र-निष्पक्ष पत्रकारिता की गंगा बहा कर
उसूलों-सिद्धांतों का हिमालय खड़ा कर चुके हैं और दूसरा ही पतित हुए जा रहे हैं !
सूप कहे सो कहे, छलनी क्या कहे, जिसमें सौ छेद ! अरे भै-बंधो आप जिन गोदियों में
सवार हैं, वे एक ही कुनबे की हैं, उसी कुनबे के एक पात्र की गोदी में बैठे वाले जो कर रहे हैं, वो अगर दलाली है तो उसी कुनबे की
दूसरी स्मार्ट-हैंडसम गोदी में बैठे वाले भी कोई उसूलों-सिद्धांतों के दम पर तन कर
नहीं खड़े हैं बल्कि सत्ता के गोदी जुगत-जुगाड़ से ही उनका दाना-पानी चल रहा है !
तो भै-बंधो आजकल “जंबूदीपे,
भारत खंडे, भारत खंड मा उत्तरखंड” में सिर्फ सत्ता संघर्ष ही नहीं चल रहा है, गोदी
संघर्ष भी चल रहा है, गोदियों में होड़ है कि वो जिनकी गोद में बैठे हैं, वही गद्दी
की गोद में खेले-कूदे,फले- फले ! देखें इस गोदी युद्ध में किन गोदी वालों की आस
परवान चढ़ती है !
-इन्द्रेश मैखुरी

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